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जी20 एम्पॉवर- आंकड़े भारतीय महिलाओं की रैंकिंग दर्शाते हैं
जी20 एम्पॉवर ने आधिकारिक तौर पर एक महिला सशक्तिकरण कार्यकर्ता समूह (वर्किंग ग्रुप) लॉन्च किया है और इसकी पहली बैठक ब्राज़ीलियाई जी20 प्रेसीडेंसी में होगी। इस ग्रुप का मुख्य उद्देश्य और जो शपथ है, वह दुनिया भर में लैंगिक समानता के लिए प्रतिबद्ध होना है। हालाँकि इस ग्रुप की स्थापना की खबर एक अच्छी बात है, लेकिन दूसरी तरफ भारतीय महिलाओं को लेकर जो स्थिति है वह बिल्कुल ही एक अलग कहानी कहती है। विश्वव्यापी स्तर पर उल्लेखनीय प्रयासों के बावजूद, भारत की महिलाओं को अभी भी देश के कई राज्यों में प्रगति के मामले में कई क्षेत्रों में प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है।
भारतीय महिलाओं की स्थिति बनाम विश्वव्यापी संकल्प- एक स्पष्ट अवलोकन
महिलाओं की सहायता के लिए डेडिकेटेड ऑपरेशनल कमिटी या ग्रुप और जी20 महिला मंत्रिमंडल ने ब्राज़ीलियाई प्रेसीडेंसी के दौरान अपनी पहली बैठक आयोजित करने का आह्वान किया। यह एक अच्छी खबर होते हुए भी, भारत के नवीनतम रिपोर्ट्स में ग्लोबल कमिटमेंट्स और भारत में वास्तविक स्थिति की जो सच्चाई है उसके बीच का एक स्पष्ट अंतर दिखाता हैं। “इंडियन फीमेल्स इन द ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी- हाउ दे हैव फेयर्ड” नामक इस अध्ययन में क्षेत्रीय असंतुलन का खुलासा करते हुए विभिन्न भारतीय राज्यों में महिला सशक्तिकरण की स्थिति के बारे में बताता है।
उल्लिखित ऑर्टिकल जियोजर्नल में प्रकाशित हुआ था, जो कि एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल है जिसे भूगोलिक रूप से संयुक्त सामाजिक विज्ञान और मानविकी (ह्यूमैनिटीज) में विशेषज्ञता प्राप्त है जो इक्कीसवीं सदी में भारतीय महिलाओं से जुड़ी सामाजिक-आर्थिक कारकों का निरीक्षण और जांच करने के लिए भू-स्थानिक तकनीकों का इस्तेमाल करता है।
अध्ययन के अनुसार, समय और विकास के बावजूद, महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व उच्च क्षेत्रों में एक ही स्तर पर रहा है और कभी नहीं बेहतर बनाया गया जो कि बिल्कुल संतोषजनक नहीं है। वैसे तो, बड़ी आबादी वाले राज्यों जैसे बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश, लोकसभा में आवंटित सीटों की बढ़ी संख्या के कारण महिलाओं की सहभागिता और जुड़ाव के बहुत अधिक आंकड़े प्रदर्शित करते हैं। लेकिन इसके विपरीत, अध्ययन ने मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और कई अन्य राज्यों में भारतीय महिलाओं के खराब प्रदर्शन के निराशाजनक आंकड़ों पर भी प्रकाश डाला है। विकास संबंधी मुद्दे, सामाजिक और आर्थिक कारक और जनसांख्यिकीय पैरामीटर जैसे कारक ऐसे क्षेत्रों में महिलाओं की सफलता और सशक्तिकरण में बाधा डालते हैं।
अब जब बात पूर्वोत्तर राज्यों की करें तब, अध्ययन यह बताता है कि आम तौर पर देश को प्रभावित करने वाले जो कुछ सामाजिक मुद्दे होते हैं उनसे मुक्त हैं, परंतु वे अभी भी गरीबी, अंधविश्वास, आर्म्ड कॉनफ्लिक्ट्, पूर्व परिवार नियोजन विधियों के प्रति आंदोलन और आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल को चुनने जैसे मुद्दों से जूझ रहे हैं।
इसके अलावा, इस अध्ययन में लैंगिक समानता के साथ-साथ महिला सशक्तिकरण के अनुरूप उल्लेखनीय सैद्धांतिक सुझाव दिए गए हैं जो एसडीजी-5 या संयुक्त राष्ट्र स्थायी विकास लक्ष्य के साथ मेल खाते हैं। यह भारत में, एक ऐसा देश जहाँ महिलाओं को रूढ़िवादिता और भेदभाव का सामना करना पड़ा है और वह अभी भी जारी है, वहाँ लैंगिक असमानता को मिटाने में मिली सफलता और बाधाओं दोनों को स्पष्ट करता है
ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष भारत 146 देशों में से 127वें स्थान पर है। इसके परिणामस्वरूप, विभिन्न क्षेत्रों में कामकाज के जगहों पर महिला कर्मचारियों की जो कम संख्या है, वह इस स्थायी समस्या को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। यह एक गंभीर समस्या है जिसे विकेड प्रॉब्लम या भयानक समस्या के रूप में भी जाना जाता है। विकेड प्रॉब्लम एक ऐसी समस्या को परिभाषित करने वाला शब्द है जिसे सरल या निश्चित तरीके से हल नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, मौसम या जलवायु परिवर्तन एक विकेड प्रॉब्लम है।
हालांकि इन समस्याओं को खत्म करने के लिए कानूनी और संवैधानिक दोनों प्रावधान लागू किए गए हैं, लेकिन अध्ययन में कहा गया है कि उठाए गए कदमों के बावजूद सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में जेंडर बायस अभी भी मौजूद है।
चुनौतियों के बावजूद, आर्टिकल में महिला सशक्तिकरण को और आगे बढ़ाने और संकल्प लेने में महिला साक्षरता, महिला केंद्रित संगठनों, सरकारी सहायता और स्वयं सहायता योजनाओं के सकारात्मक प्रभावों को विशेष महत्व दिया गया है।
इस अध्ययन में शामिल डेटा का स्रोत सेकेंडरी है और इसे कई सरकारों से इकट्ठा किया गया है और इसका उद्देश्य भारत में महिला सशक्तिकरण के परिदृश्य में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करना है। इस अध्ययन में विशेष रूप से गोवा, तमिलनाडु, सिक्किम और केरल राज्यों में विभिन्न सरकारी योजनाओं के प्रभाव पर जोर दिया गया है, इन क्षेत्रों में जहाँ महिला सशक्तिकरण की प्रगति को बढ़ाने या संकेत देने वाले कारक देश के बाकी हिस्सों की तुलना में कहीं ज्यादा बेहतर हैं।
एक प्रमुख अंतर लाने के लिए संभवतः क्या किया जा सकता है?
विभिन्न शोधों के अनुसार एसएचजी या स्वयं सहायता समूह या महिला आधारित संगठनों को मुक्ति (लिबरेशशन) और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण प्रेरक माना जाता है। केरल, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्य जहाँ एसएचजी की बहुत मजबूत और सक्रिय उपस्थिति है, वे राज्य स्वाभाविक रूप से महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में उन्नत प्रदर्शन दिखाते हैं।
जी20 नई दिल्ली में शामिल नेताओं ने घोषणा की कि वर्ष 2023 में देश विशेष रूप से सशक्तिकरण के साथ सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने, सामाजिक और साथ ही आर्थिक सशक्तिकरण को आगे बढ़ाने, जेंडर गैप को कम करने या समाप्त करने, महिलाओं के लिए खाद्य सुरक्षा, कल्याण और पोषण सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा और लिंग-समावेशी जलवायु परिवर्तन कार्रवाई की शुरूआत करेगा।
जी20 नई दिल्ली के नेताओं के अनुसार महिला नेतृत्व वाले विकास के तहत विषय या थीम व्यापक हैं लेकिन संक्षेप में जिन बातों को बताई गई उन सभी बातों का सारांश इस प्रकार है-
– एसटीईएम सहित शिक्षा तक एक आसान पहुँच प्रदान करने के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में निवेश बढ़ाना।
– महिला स्वामित्व वाले, महिला नेतृत्व वाले एमएसएमई के साथ-साथ महिला एंटरप्रेन्योरों को बढ़ावा देना।
– महिलाओं के नेतृत्व और निर्णय लेने की क्षमताओं को गहराई से बढ़ावा देना।
– जलवायु परिवर्तन और अन्य क्षेत्रों में महिलाओं की भूमिकाओं पर ध्यान देना और उन्हें प्रोत्साहित करना।
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक, पूनम मुत्तरेजा ने कहा कि भले ही भारत ने जेंडर गैप को 64.3% तक कम करने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है, लेकिन देश अभी भी लगभग 40% समानता लाने में और दोनों लिंगों के लिए समान अवसर प्रदान करने में पीछे है। उन्होंने आगे कहा, “यह समय की मांग है कि जी20 के महिला नेतृत्व वाले विकास पर जोर देने के पीछे की जो भावना है उसे, विशेष रूप से भारत जैसे देशों में, जहाँ बड़े पैमाने पर और सदियों से चली आ रही लैंगिक असमानताएँ फैली हैं, कड़े या ठोस कानूनों, नीतियों, कार्यक्रमों को पेश करके और लिंग लाभांश (जेंडर डिविडेंड) की व्यापक संभावनाओं का इस्तेमाल करके पूरे जोर शोर से क्रियान्वित किया जाए।”
महिला सशक्तिकरण में शामिल कार्यकर्ता समूह उन सभी प्रमुख कारकों पर ध्यान केंद्रित करेगा जिनका वर्णन आर्टिकल में पहले ही किया जा चुका है। उन पहलुओं पर काम करके, कार्यकर्ता समूह का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रव्यापी एक लिंग-समावेशी और निष्पक्ष समाज की स्थापना करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की सक्रिय भूमिका के माध्यम से महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाना है।